स्वविषयासंप्रयोगे चित्तस्य स्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः॥५४॥
ततः परमा वश्यतेन्द्रियाणाम्॥५५॥
पतञ्जलि योग सूत्र साधनपाद
स्व-विषय के साथ सम्प्रयोगाभाव (संयोग-अभाव) इन्द्रियों का जो चित्त स्वरुपानुकार होता है वही प्रत्याहार है इसी से इन्द्रियाँ परम (पूर्णतः) वश में होतीं हैं
svaviṣaya-asaṁprayoge cittasya svarūpānukāra-iv-endriyāṇāṁ pratyāhāraḥ ||54||
tataḥ paramā-vaśyatā indriyāṇām ||55||
Patañjali Yoga Sūtra 2.54,55 (Sādhana-Pāda 54 & 55)
Once chitta(self) withdraws to its original(true) being by renouncing external objects then sensory control naturally comes following means gaining absolute control over the senses
महाभाष्य:
स्वविषयसंप्रयोगाभावे चित्तस्वरूपानुकार इवेति चित्तनिरोधे चित्तवन्निरुद्धानीन्द्रियाणि नेतरेद्रियजयवदुपायान्तरमपेक्षन्ते । यथा मधुकर्राजं मक्षिका उत्पतन्तमनूत्पतन्ति, निविशमानमनुनिविशन्ते तथेन्द्रियाणि चित्तनिरोधे निरुद्धानीत्येष प्रत्याहारः ॥५४॥
Mahābhāṣya
svaviṣayasaṁprāyogā bhāve chittaswarupānukar iveti chittavnnirudhani chittannirudhadhaṇi indriyaṇi itaredriyajayavadupāyāntarampekshnte॥
Yathā madhukarrājam makshikā utpatantmanutpatanti, niviśmānmanūniviśante tathendriyāṇi chittanirodhe niruddhānityeṣ pratyāhār ॥54॥
जिस प्रकार उड़ती हुई रानी मधुमख्खी के पीछे मधुमख्खियाँ उड़ती हैं और जब रानी मधुमख्खी बैठ जाती है तो अन्य मधुमख्खियाँ भी उसके पीछे बैठ जाती है अर्थात उसका अनुसरण करती हैं उसी प्रकार चित्त के विषय संयोग-अभाव की स्थिति मे इन्द्रियाँ भी विषय-विरक्त हो जाती हैं
Sences follow mind in the same way as hive of bees follow queen bee. So when mind withdraws to its real self then senses (indriyā) aligned in the same way. (The withdrawal achieved by Cessation of involvement, not by suppression).
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